हरियाणा के गाँव में भी वो पहले वाली बात नहीं रही! गाँव के बच्चों का बचपन कुछ अलग ही होता है!

जब भी गांव का जिक्र आता है तो गांव के कुछ खास चीजें याद आ जाती हैं जो अक्सर शहरों में देखने को नहीं मिलती थी! हमारा बचपन भी एक गांव में गुजरा! वह बचपन शहर के बच्चों से बिलकुल अलग होता था! मगर अगर आज की तुलना की जाए तो गांव के बच्चों का बचपन भी शहर के बच्चों के बचपन जैसा ही हो गया! अब हरियाणा के गांव में भी वह बात नहीं रही जो पहले होती थी! अब शहर का बच्चा हो जा गांव का बच्चा बस अपने फोन से चिपका रहता है और उसी में गेम खेलता रहता है! वह फोन में ही जीत हार कर खुद को चैंपियन महसूस करते हैं!

अगर अपने बचपन के कुछ दिन याद करता हूं तो याद आता है – ना जाने कितने तरह तरह के खेल! गलियों में भाग भाग कर गलियां तोड़ देते थे, कभी साइकिल के टायर गलियों में से दौड़ाते ले जाते थे, कभी लट्टू खेलते थे, तो कभी फोटो तो, कभी माचिस के ताश के पत्तों के साथ खेलते थे! कभी गिल्ली डंडा खेलते थे, तो अक्सर बड़े समझाते थे कि गिल्ली डंडा नहीं खेलना चाहिए ये किसी की आंख में लग जाएगी! मगर हम बच्चे कहां मानने वालों में से होते थे! मुझे याद आता है कि तब क्रिकेट खेलने जाते थे तो गर्मी में दोपहर में भी 1 या 2:00 बजे के समय जब सारी दुनिया को गर्मी लगती थी! मगर हम बच्चे गर्मी में खुले मैदान में जाकर खेलते थे! पता ही नहीं होता था बचपन में क्या सर्दी,क्या गर्मी, क्या बरसात! बस हर मौसम का मजा लेना होता था! बारिश आई तो बारिश में कूदना शुरू! कभी भैंसों को जोहड़ में ले जाते हुए जोहड़ में गोते लगाते थे!

मगर अब जोहड़ सूख गए हैं! कुछ गांव ही होंगे जहां के जोहड़ पानी से भरे हुए हैं! और बच्चे नहाते हैं! सर्दी में आग से सेंकने के लिए लोगों की पूराले जरा देते थे! कभी पता चल जाता है किसी के खेत में गन्ने लगे हुए हैं, अमरूद का पेड़ है, या फिर जामुन का है तो पक्का चोरी छुपे तोड़ कर लाते थे! मगर आजकल के बच्चे नहीं जानते है कि इनमें भी क्या मजा आता था! कैसे यह छोटे छोटे किस्से जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं! हमारे समय पर गलियों में इतना ज्यादा शोर बच्चों का सुनाई देता था कि पड़ोसी भी परेशान हो जाते थे!

जवानी में तो यूं ही जिम्मेदारी घेर ही लेती हैं! मगर अगर बचपन में भी शरारते ना की तो बचपन फिर कहां बचपन जैसा लगता है! लिखते लिखते खेलों के नाम याद आ रहे हैं! चोर सिपाही, लोहा लक्कड़, बोघा बंटी, पकड़ा पकड़ी, लुक्का छिपायी, गिंडू पिठू ( जिसमें एक कपड़े की बॉल बनाकर पत्थर गिराते थे ) चपल्ल जूते इकट्ठे करके खेलते थे! और भी ना जाने कितने ऐसे खेल जो हमारे गांव की चौपाल पर बना रखे थे! मगर अब जो बाल भी खाली पड़ी रहती हैं! और शाम को गांव के चौंक भी!

50- 60 साल के गांव के व्यक्ति बताते हैं कि अब लोग गांव के बाहर घूमने जाना भी पसंद नहीं करते! पहले लोग शाम को खेतों की तरफ आते जाते दिखाई देते थे! मगर आजकल के बच्चे और युवा पीढ़ी खेतों में घूमना भी उस तरीके से पसंद नहीं करते! पहले गांव में हर घर में आपको एक भैंस जरूर मिल जाती थी! जिसको परिवार अपने खाने पीने के लिए रखता था! मगर अब धीरे-धीरे गांव से यह भी कम हो रहा है!

आजकल की युवा पीढ़ी कहती है कि उनसे खेतों का या पशुओं का काम नहीं होता है! इसलिए ज्यादातर लोग घर में भैंस पालना ही नहीं चाहते! पहले लोग ज्यादातर काम खुद से ही करते थे!  आजकल खेतों में भी मजदूरों से हर काम करवाते हैं! इसलिए उनको मजदूरी देनी पड़ती है! जिससे खेतों में खर्च ज्यादा और मुनाफा कम होने लगा है! किसानों के लिए सबसे अच्छा यही था कि वह घर पर पशुपालन कर लेते थे! कुछ फायदा उन्हें यहां से भी हो जाता था! क्योंकि उनके पास अनाज और चारा खुद के खेतों का होता था! मगर अभी पशुपालन में भी कमी देखने को मिलती है! जिसे उन्हें खुद के लिए भी दूध किसी डेयरी से लेकर आना पड़ता है!

 

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